Sunday, June 12, 2016

The Dhauladhar Mountains Watch Over The Journey Of Self-Discovery Amid Tea Gardens, Gurgling Brooks And Nature At Palampur


--- Neelima Singh is our guest writer this week. When not restricted by office, she spends her time identifying trees and birds and sharing her knowledge with family and friends. She can be contacted at ekalpaviram@gmail.com.

पठानकोट जंक्शन से शुरू होकर जब हमारी नैरो गेज ट्रेन हिमाचल के पुलों और सुरंगों से गुज़रने लगी तो एक एक करके बेहद खूबसूरत नज़ारे हमारे सामने आने लगे । जितनी बार हमारी ट्रेन अँधेरी सुरंगों से गुज़रती, छोटे बच्चे कौतूहलवश ताली बजाते और बड़े बूढ़े जोर-जोर से सीटियां बजाते। वैसे देखा जाए तो दिल तो सबका ही बच्चों सा होता है - बस कुछ के दिलों के बच्चे बड़े हो जाते हैं और कुछ के नहीं । पठानकोट से पालमपुर तक की यात्रा नैरो गेज से ही करनी चाहिए, तभी आप मैदान से पहाड़ के बीचे की बदलती हवाओं को महसूस कर सकते हैं । रास्ते भर छोटी छोटी नदियां, धान के सीढ़ीनुमा खेत और चीड़ देवदार के पेड़ नज़ारों को बेहद रोमांचक बनाते हैं ।


पालम - मतलब बहुत सारा पानी, जो इसका मतलब न भी जानता हो, वो पालमपुर पहुँच कर खुद ही इस बात का अंदाज़ा लगा सकता है कि कांगड़ा घाटी की इस छोटी सी खूबसूरत जगह को पालमपुर क्यों कहते हैं। छोटी-छोटी चंचल सी अल्हड़ जलधाराएं - इठलाती, बलखाती, गिरती-संभलती, जाने किससे मिलने की जल्दी में एक दूसरे से होड़ लगाए रहती हैं ।


धौलाधार पहाड़ियों की छत्रछाया में बसा यह खूबसूरत-सा शहर जो कि उत्तर भारत के चाय बागानों के लिए मशहूर है, अपने-आप में बेशुमार सौंदर्य और रोमांच समेटे हुए है । लगभग पूरे साल भर धौलाधार की चोटियां बर्फ से सफ़ेद रहती हैं, लगता है मानो यह शहर एक बड़ी-सी पेंटिंग का हिस्सा हो ।


हर जगह के चाय बागान की खूबसूरती अलग प्रकार की होती है - दार्जिलिंग के चाय बागानों की तुलना मुन्नार के चाय बागानों से नहीं की जा सकती | बिलकुल वैसे ही पालमपुर के चाय बागानों की खूबसूरती अपने आप में अनूठी है । यहां के चाय बागान में रुक कर, काँगड़ा स्पेशल चाय की चुस्कियां लेने में एक अगल ही मजा है जो कि शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता ।


अपनी मनपसंद किताबें, इंडोर गेम्स, बैडमिंटन, अपनी इच्छानुसार कोई सा भी गेम खेल सकते हैं । लेकिन एक अनुभव जो आपके मष्तिष्क पर संतुष्टि और शान्ति की छाप छोड़ जाता है वो है बालकनी में बैठ कर चिड़ियों की चहचहाट और झींगुरों के कीर्तन के बीच धौलाधार की हिमाच्छादित चोटियों को देखते हुए चाय पीना । ऐसा माहौल बन जाता है कि दार्शनिक भाव आपने आप जागृत हो जाते हैं - इस विशाल अपार संसार में हमारा अस्तित्व कितना क्षणभंगुर है ।

हर एक पेड़, फूल पत्ती में जान होती है, भावनाएं होती हैं । यह सब हम अक्सर बड़े शहरों की चकाचौंध में भूल जाते हैं, या जानकार भी नज़रअंदाज़ कर देते हैं । ये पहाड़, नदियां, पेड़, वन, जीव-जंतु हमारे ही अभिन्न अंग हैं, यह बातें बताने के लिए काश परमपिता ने पेड़ों के भी आँख, नाक और मुंह बनाये होते - तो शायद प्रकृति हमें यह सब बातें हमारी भाषा में ही समझा पाती ।


आत्मावलोकन के अलावा भी पालमपुर में करने के लिए बहुत कुछ है । अगर आप ज्यादा साहसिक प्रवृत्ति वाले हैं तो आपके लिए हर साल यहां पर पैराग्लाइडिंग और ट्रैकिंग जैसे बहुत से कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, जिसका आप जी-भर आनंद उठा सकते हैं । इसके अलावा जिनको धर्म के गूढ़ रहस्यों को समझने की ललक हो, उनके लिए पालमपुर और आसपास के इलाकों में (धर्मशाला) बहुत सारे मंदिर और बौद्ध मठ भी हैं, जहां आप मन की शान्ति की खोज के लिए जा सकते हैं । वैसे तो महात्मा बुद्ध की सबसे बड़ी शिक्षा यह थी की - इच्छाएं और अपेक्षाएं मत रखो, फिर भी पालमपुर बार-बार जाने और जाकर वहाँ के चाय बागानों में रुकने की इक्षा को मैं कभी भी दफ़न नहीं कर पाउंगी, जब भी मौका मिला धौलाधार और पालमपुर की सरिताओं से मिलने जरूर जाउंगी ।

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